दूसरा मेंढक, हालांकि, हार मानने को तैयार नहीं था। वह लगातार उछलता रहा

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दूसरा मेंढक
,
हालांकि
,
हार मानने को तैयार नहीं था। वह लगातार उछलता रहा
,
कूदता रहा। गाँव के लोग उसे चिल्लाकर कह रहे थे
,
"तुम भी क्यों अपनी ऊर्जा बर्बाद कर रहे हो
?
तुम भी नहीं बच पाओगे
!
"
लेकिन वह मेंढक उनकी बातें अनसुनी करके अपने प्रयासों में जुटा रहा। अंत में
,
उसने एक बड़ा छलांग लगाई और वह गड्ढे से बाहर निकलने में सफल हो गया। गाँव के लोग हैरान रह गए और उससे पूछा
,
"तुमने हमारी बातें क्यों नहीं सुनीं
?
"
तब मेंढक ने इशारा करते हुए कहा
,
"मैं सुन नहीं सकता। मैं बहरा हूँ। मैंने सोचा कि आप लोग मुझे प्रोत्साहित कर रहे हैं
,
इसलिए मैंने अपनी पूरी ताकत लगाकर कोशिश की।"
कहानी से सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि दूसरों की नकारात्मक बातें हमें कभी भी हतोत्साहित नहीं कर सकतीं
,
अगर हम अपने आप पर विश्वास करते हैं और लगातार प्रयास करते रहते हैं। हमें अपने कान बंद करके अपनी राह पर चलना चाहिए और तब तक कोशिश करनी चाहिए जब तक हम सफल न हो जाएँ।
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