रात का समय था, और गाँव के सभी लोग अपने-अपने घरों में सो रहे थे

रात का समय था, और गाँव के सभी लोग अपने-अपने घरों में सो रहे थे। चांदनी रात में गाँव के बाहर स्थित एक पुराना हवेली, जो वर्षों से खंडहर बन चुका था, अजीब तरह से चमक रहा था। लोग कहते थे कि इस हवेली में किसी समय एक अमीर ज़मींदार रहा करता था, लेकिन उसकी मृत्यु के बाद से यहाँ कुछ अजीब घटनाएँ होने लगी थीं। रमेश, गाँव का सबसे निडर युवक, इस हवेली के किस्सों को अफवाह मानता था। उसने ठान लिया कि वह उस रात हवेली जाकर देखेगा कि असल में वहाँ क्या है। वह चुपके से हवेली की ओर चल पड़ा। जैसे ही वह हवेली के पास पहुँचा, उसने देखा कि हवेली का मुख्य दरवाज़ा थोड़ा खुला हुआ है। उसके कदमों की आवाज़ जैसे ही हवेली की जमीन पर पड़ी, हवा अचानक तेज़ हो गई और दरवाज़ा अपने आप खुलने लगा। रमेश ने हिम्मत जुटाई और अंदर कदम रखा। अंदर घना अंधेरा था, केवल चांदनी की हल्की रोशनी खिड़कियों से अंदर आ रही थी। हवेली में हर तरफ धूल और मकड़ी के जाले फैले हुए थे। जैसे ही उसने एक कमरा खोला, उसे वहाँ एक पुरानी लकड़ी की कुर्सी दिखी, जो हिल रही थी, जैसे कोई अभी-अभी वहाँ से उठा हो। रमेश का दिल धक-धक करने लगा, लेकिन उसने खुद को शांत किया और कमरे में घुस गया। तभी उसे लगा कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा है। वह तेजी से पीछे मुड़ा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। अचानक हवेली के दूसरे कोने से एक धीमी, कराहती हुई आवाज़ सुनाई दी। आवाज़ किसी बूढ़े व्यक्ति की लग रही थी, जो दर्द से कराह रहा हो। रमेश का दिल अब ज़ोर से धड़कने लगा। वह आवाज़ की दिशा में बढ़ने लगा। जैसे ही वह हवेली के सबसे बड़े कमरे में पहुँचा, उसने देखा कि वहाँ एक पुराना आईना था, जिसके सामने एक परछाई खड़ी थी। परछाई की आँखें खून जैसी लाल थीं, और उसका चेहरा पूरी तरह से विकृत था। रमेश के शरीर में जैसे जान ही नहीं रही, वह जड़वत हो गया। परछाई धीरे-धीरे आईने से बाहर निकलने लगी और रमेश की ओर बढ़ने लगी। रमेश की आँखों में भय समा गया था, उसके पैर जैसे ज़मीन से चिपक गए थे। परछाई ने धीरे से अपना हाथ रमेश की ओर बढ़ाया और उसे छूते ही रमेश चीख पड़ा। अगले दिन सुबह, गाँव वालों ने रमेश को हवेली के पास बेहोश पड़ा पाया। उसकी आँखें खुली हुई थीं, लेकिन वह कुछ बोल नहीं रहा था। उसके हाथों में पुराने ज़मींदार की एक फोटो थी, और उस फोटो में ज़मींदार की आँखें खून जैसी लाल हो गई थीं। गाँव के लोग
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रात का समय था
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और गाँव के सभी लोग अपने-अपने घरों में सो रहे थे। चांदनी रात में गाँव के बाहर स्थित एक पुराना हवेली
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जो वर्षों से खंडहर बन चुका था
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अजीब तरह से चमक रहा था। लोग कहते थे कि इस हवेली में किसी समय एक अमीर ज़मींदार रहा करता था
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लेकिन उसकी मृत्यु के बाद से यहाँ कुछ अजीब घटनाएँ होने लगी थीं।
रमेश
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गाँव का सबसे निडर युवक
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इस हवेली के किस्सों को अफवाह मानता था। उसने ठान लिया कि वह उस रात हवेली जाकर देखेगा कि असल में वहाँ क्या है। वह चुपके से हवेली की ओर चल पड़ा। जैसे ही वह हवेली के पास पहुँचा
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उसने देखा कि हवेली का मुख्य दरवाज़ा थोड़ा खुला हुआ है। उसके कदमों की आवाज़ जैसे ही हवेली की जमीन पर पड़ी
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हवा अचानक तेज़ हो गई और दरवाज़ा अपने आप खुलने लगा।
रमेश ने हिम्मत जुटाई और अंदर कदम रखा। अंदर घना अंधेरा था
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केवल चांदनी की हल्की रोशनी खिड़कियों से अंदर आ रही थी। हवेली में हर तरफ धूल और मकड़ी के जाले फैले हुए थे। जैसे ही उसने एक कमरा खोला
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उसे वहाँ एक पुरानी लकड़ी की कुर्सी दिखी
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जो हिल रही थी
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जैसे कोई अभी-अभी वहाँ से उठा हो।
रमेश का दिल धक-धक करने लगा
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लेकिन उसने खुद को शांत किया और कमरे में घुस गया। तभी उसे लगा कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा है। वह तेजी से पीछे मुड़ा
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लेकिन वहाँ कोई नहीं था। अचानक हवेली के दूसरे कोने से एक धीमी
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कराहती हुई आवाज़ सुनाई दी। आवाज़ किसी बूढ़े व्यक्ति की लग रही थी
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जो दर्द से कराह रहा हो।
रमेश का दिल अब ज़ोर से धड़कने लगा। वह आवाज़ की दिशा में बढ़ने लगा। जैसे ही वह हवेली के सबसे बड़े कमरे में पहुँचा
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उसने देखा कि वहाँ एक पुराना आईना था
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जिसके सामने एक परछाई खड़ी थी। परछाई की आँखें खून जैसी लाल थीं
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और उसका चेहरा पूरी तरह से विकृत था।
रमेश के शरीर में जैसे जान ही नहीं रही
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वह जड़वत हो गया। परछाई धीरे-धीरे आईने से बाहर निकलने लगी और रमेश की ओर बढ़ने लगी। रमेश की आँखों में भय समा गया था
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उसके पैर जैसे ज़मीन से चिपक गए थे। परछाई ने धीरे से अपना हाथ रमेश की ओर बढ़ाया और उसे छूते ही रमेश चीख पड़ा।
अगले दिन सुबह
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गाँव वालों ने रमेश को हवेली के पास बेहोश पड़ा पाया। उसकी आँखें खुली हुई थीं
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लेकिन वह कुछ बोल नहीं रहा था। उसके हाथों में पुराने ज़मींदार की एक फोटो थी
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और उस फोटो में ज़मींदार की आँखें खून जैसी लाल हो गई थीं।
गाँव के लोग
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