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बहुत कुछ है दिल में उसके भी
,
मगर वो कह नहीं पाती है
तुम्हारे भविष्य की चिंता
,
उसे आज भी वैसे ही सताती है
कोई सवाल उससे करने से पहले
,
खुद को आईने में देख लेना
इस उम्र में भी तुम्हारी खातिर
,
किस कदर वो कष्ट उठाती है
पलकों पे बिठा कर के तुमको
,
हर पल पाला है जिसने
लड़खड़ाए जब कभी तुम
,
तो संभाला है जिसने
मत लाओ अंधकार
,
जीवन में उसके तुम
तुम्हारे जीवन में आखिर
,
किया उजाला है जिसने
डगमगाते पगों से वो
,
आज भी तुम्हे चाय पिलाती है
इस उम्र में भी तुम्हारी खातिर किस कदर वो कष्ट उठाती है
बचपना अब छोड़ो भी
,
जिम्मेदारी की बात करो
हर गम के घूंट को पी जाती है जो
,
उस बेचारी की बात करो
उसकी जगह पे तुम कभी
,
खुद को रख कर देखो ना
दिखती नहीं खुली आंखों से तुमको जो
,
उसकी लाचारी की बात करो
ये कैसा प्रेम तुम्हारा है
,
कि तुमसे वो कुछ कह नहीं पाती है
इस उम्र में भी तुम्हारी खातिर
,
किस कदर वो कष्ट उठाती है
वो देख रहा है
,
उसका टूटा दिल टूटी उसकी उम्मीदों को
कि मत तोड़ो अब बची हुई
,
दो चार और मुरीदों को
तुम्हारी नींद की खातिर जो
,
रात रात भर जगती थी
मत उड़ाओ ना वृद्धावस्था
,
में तुम उसकी नींदों को
बोझ तुम्हारे अहंकार का वो
,
अपने सर पे उठाती है
इस उम्र में भी तुम्हारी खातिर
,
किस कदर वो कष्ट उठाती है
जब तुम गुजरोगे उसी दौर से
,
तब बात समझ आ जायेगी
मां क्या होती है आखिर
,
साक्षात समझ आ जायेगी
कोस रहे हो जिसको
,
छोटी छोटी बातों पर
जब परवरिश की ज़िम्मेदारी आयेगी
,
तब औकात समझ आ जायेगी
तुम ही ठोकर देते हो जिसे
,
समझती वो वृद्धावस्था की लाठी है
इस उम्र में भी तुम्हारी खातिर किस कदर वो कष्ट उठाती है।
~नीतू
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