अकबर अक्सर बीरबल की अक्लमंदी और हाज़िर जवाबी से खुश होकर उसे ईनाम दिया करते थे

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अकबर अक्सर बीरबल की अक्लमंदी और हाज़िर जवाबी से खुश होकर उसे ईनाम दिया करते थे
.
एक बार उन्होंने भरे दरबार में बीरबल को ईनाम देने की घोषणा की
.
लेकिन बाद वे ईनाम देना भूल गए
.
बीरबल कई दिनों तक इंतज़ार करता रहा
,
लेकिन उसे ईनाम नहीं मिला
.
मांगना उसे उचित नहीं लग रहा था और अकबर थे कि ईनाम देने का नाम नहीं ले रहे थे
.
अकबर के इस रवैये से बीरबल थोड़ा दुःखी था
.
एक दिन अकबर बीरबल को साथ लेकर सैर पर निकले
.
वे दोनों यमुना नदी के तट पर पैदल टहल रहे थे
.
तभी वहाँ से एक ऊँट गुज़रा ऊँट की मुड़ी हुई गर्दन को देख अकबर के ज़ेहन में एक सवाल कौंध गया और उन्होंने फ़ौरन बीरबल से पूछा
,
बीरबल
,
देखो इस ऊँट को
.
इसकी गर्दन मुड़ी हुई है
.
ऐसा क्या कारण है कि ऊँट की गर्दन मुड़ी हुई होती है
?
"
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