एक दिन सुर्ख रंग के जोड़े पहने हुए हसनैन करीमैन हुजरे फातिमा से निकलते है

एक दिन सुर्ख रंग के जोड़े पहने हुए हसनैन करीमैन हुजरे फातिमा से निकलते है। कम उम्र की वजह से कभी गिरते हैं, कभी संभलते हैं। और आका करीम ख़ुत्बा इरशाद कर रहे हैं ख़ुत्बा छोड़ कर हुज़ूर ने शहजादों को उठा लिया । वो मंजर भी जमाने ने देखा, हजरत ये अब्दुल्ला बिन शद्दाद कहते हैं कि हुजूर सजदे में थे और सज्दा इतना तविल हो गया। हमें लगा या तो वहीं का नजूल हो रहा है या फिर अल्लाह का हुक्म आ गया। और अल्लाह के महबूब की रुह कब्ज कर ली गई है। लेकिन मैंने जब नज़रें उठा के थोड़ा सा देखा तो क्या मंज़र था कि हुसैन इब्ने अली हुजूर की पुश्त पे बैठे हुए हैं। और मेरे आका सजदे को तूल दे रहे। अल्लाहु अकबर । हुसैन के लिए पैगंबर के सजदो को तूल दिया जा रहा है। हुसैन इब्ने अली कभी मिम्बर पे हूजूर की अतराफ में बैठते हैं। वो मंजर भी दुनिया ने देखा की हूजूर के मुबारक कंधों पर हुसैन इब्ने अली बैठे है और हुजूर की जुल्फों को पकड़ा हुआ है । तो हजरत उमर रजिअल्लाहू अनुहू देख के कहते है वाह वाह कैसी सवारी मयशर आई हुसैन इब्ने अली को । तो मेरे आका मुस्कुराके कहते हैं, उमर सवारी देखते हो? सवार भी तो देखो । अल्लाहु अकबर। हज़रत उसमा बिन ज़ैद बिन हारसा रजिअल्लाहू तआला अनहू फरमाते हैं। रात का एक पहर गुजर गया और मुझे हूजूर से कोई काम था, मैं आका करीम की खिदमत में हाजिर हुआ , दरें दौलत पे दस्तक दी। हुजूर तशरीफ लाये तो चादर ओढ़ी थी। तो मैंने अपनी हाजत कही तो हूजूर ने मेरी हाजत पूरी कर दी ।लेकिन एक मंजर मैंने देखा कि हुजूर ने जो चादर ओढ़ी थी उसके अतराफ में पहलुओं में उभार थी, जिस तरह अंदर कोई हो, मुझसे ना रहा गया, मैंने पूछ लिया, मैंने कहा बंदा नवाज़ चादर के अंदर क्या है? तो हूजूर ने चादर को खोल दिया। तो कहते हैं मैंने अपनी आँखों से देखा। एक पहलू से इमाम हुसैन लिपटे हुए थे। और एक पहलू से इमाम ए हसन लिपटें हुए थे । फ़रमाया ये मेरी बेटी के बेटे हैं ऐ अल्लाह मै इनसे प्यार करता हूं, तू भी इनसे प्यार कर। जो इनसे प्यार करे तु उनसे भी प्यार कर । इनकी मोहब्बत का दर्श दिया। इनके प्यार का सबक पढ़ाया। कहा इनसे प्यार करने वाला मेरे से प्यार करने वाला है। इनसे बुग्ज रखने वाला मेरे से बुग्ज रखने वाला है। उनकी तकलीफ हूज़ूर को बेचैन कर देती थीं। एक दिन नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम हज़रत ए सईदा फातिमा तो जहरा रजिअल्लाहू तआला अनहा के घर
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एक दिन सुर्ख रंग के जोड़े पहने हुए हसनैन करीमैन हुजरे फातिमा से निकलते है। कम उम्र की वजह से कभी गिरते हैं
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कभी संभलते हैं। और आका करीम ख़ुत्बा इरशाद कर रहे हैं ख़ुत्बा छोड़ कर हुज़ूर ने शहजादों को उठा लिया । वो मंजर भी जमाने ने देखा
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हजरत ये अब्दुल्ला बिन शद्दाद कहते हैं कि हुजूर सजदे में थे और सज्दा इतना तविल हो गया। हमें लगा या तो वहीं का नजूल हो रहा है या फिर अल्लाह का हुक्म आ गया। और अल्लाह के महबूब की रुह कब्ज कर ली गई है। लेकिन मैंने जब नज़रें उठा के थोड़ा सा देखा तो क्या मंज़र था कि हुसैन इब्ने अली हुजूर की पुश्त पे बैठे हुए हैं। और मेरे आका सजदे को तूल दे रहे। अल्लाहु अकबर । हुसैन के लिए पैगंबर के सजदो को तूल दिया जा रहा है। हुसैन इब्ने अली कभी मिम्बर पे हूजूर की अतराफ में बैठते हैं। वो मंजर भी दुनिया ने देखा की हूजूर के मुबारक कंधों पर हुसैन इब्ने अली बैठे है और हुजूर की जुल्फों को पकड़ा हुआ है । तो हजरत उमर रजिअल्लाहू अनुहू देख के कहते है वाह वाह कैसी सवारी मयशर आई हुसैन इब्ने अली को । तो मेरे आका मुस्कुराके कहते हैं
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उमर सवारी देखते हो
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सवार भी तो देखो । अल्लाहु अकबर।
हज़रत उसमा बिन ज़ैद बिन हारसा रजिअल्लाहू तआला अनहू फरमाते हैं। रात का एक पहर गुजर गया और मुझे हूजूर से कोई काम था
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मैं आका करीम की खिदमत में हाजिर हुआ
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दरें दौलत पे दस्तक दी। हुजूर तशरीफ लाये तो चादर ओढ़ी थी। तो मैंने अपनी हाजत कही तो हूजूर ने मेरी हाजत पूरी कर दी ।लेकिन एक मंजर मैंने देखा कि हुजूर ने जो चादर ओढ़ी थी उसके अतराफ में पहलुओं में उभार थी
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जिस तरह अंदर कोई हो
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मुझसे ना रहा गया
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मैंने पूछ लिया
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मैंने कहा बंदा नवाज़ चादर के अंदर क्या है
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तो हूजूर ने चादर को खोल दिया। तो कहते हैं मैंने अपनी आँखों से देखा। एक पहलू से इमाम हुसैन लिपटे हुए थे। और एक पहलू से इमाम ए हसन लिपटें हुए थे ।
फ़रमाया ये मेरी बेटी के बेटे हैं ऐ अल्लाह मै इनसे प्यार करता हूं
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तू भी इनसे प्यार कर। जो इनसे प्यार करे तु उनसे भी प्यार कर । इनकी मोहब्बत का दर्श दिया। इनके प्यार का सबक पढ़ाया। कहा इनसे प्यार करने वाला मेरे से प्यार करने वाला है। इनसे बुग्ज रखने वाला मेरे से बुग्ज रखने वाला है।
उनकी तकलीफ हूज़ूर को बेचैन कर देती थीं। एक दिन नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम हज़रत ए सईदा फातिमा तो जहरा रजिअल्लाहू तआला अनहा के घर
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