घर से निकलते ही बाहर चौराहे के सामने ही मोटे लाला जलेबी वाले की मशहूर दुकान थी


घर से निकलते ही बाहर चौराहे के सामने ही मोटे लाला जलेबी वाले की मशहूर दुकान थी। सुबह बेड़मी, कचौरी और साथ में गरमा गरम जलेबी मिलती थीं। शाम को एक बड़ी सी कड़ाही में दूध उबाला जाता था। जिससे रबड़ी तैयार होती थी। रात को दूर दूर से लोग दूध जलेबी खाने के लिये आते थे। छज्जू मल बहुत मोटे थे। वे दुकान पर बैठे रहते थे अपने कारीगरों को डॉंटते रहते थे। गल्ला सम्हालना उन्हें बहुत अच्छी तरह से आता था। किसी से भी एक रुपये का हिसाब गलत नहीं होता था। सुबह ग्यारह बजे से रात के बारह बजे तक दुकान पर ही बैठे रहते थे। सभी उन्हें मोटे लाला के नाम से जानते थे। कुछ पुराने लोग थे, जिन्हें उनका नाम छज्जू मल पता था। मैं उस समय तेरह या चौदह वर्ष का था। मां से पांच रुपये लेकर जाता था। दो रुपये की दो बेड़मी और तीन रुपये की जलेबी आ जाती थी। वहीं बराबर में पड़ी बेंच पर बैठ कर खाता था। हम दो दोस्त जाते थे। हम कोशिश करते थे कि एक ही बेड़मी में सारी सब्जी खा जाते थे। फिर दोबारा दोंना लेकर आगे बढ़ा देते थे। : घर से निकलते ही बाहर चौराहे के सामने ही मोटे लाला जलेबी वाले की मशहूर दुकान थी। सुबह बेड़मी, कचौरी और साथ में गरमा गरम जलेबी मिलती थीं। शाम को एक बड़ी सी कड़ाही में दूध उबाला जाता था। जिससे रबड़ी तैयार होती थी। रात को दूर दूर से लोग दूध जलेबी खाने के लिये आते थे। छज्जू मल बहुत मोटे थे। वे दुकान पर बैठे रहते थे अपने कारीगरों को डॉंटते रहते थे। गल्ला सम्हालना उन्हें बहुत अच्छी तरह से आता था। किसी से भी एक रुपये का हिसाब गलत नहीं होता था। सुबह ग्यारह बजे से रात के बारह बजे तक दुकान पर ही बैठे रहते थे। सभी उन्हें मोटे लाला के नाम से जानते थे। कुछ पुराने लोग थे, जिन्हें उनका नाम छज्जू मल पता था। मैं उस समय तेरह या चौदह वर्ष का था। मां से पांच रुपये लेकर जाता था। दो रुपये की दो बेड़मी और तीन रुपये की जलेबी आ जाती थी। वहीं बराबर में पड़ी बेंच पर बैठ कर खाता था। हम दो दोस्त जाते थे। हम कोशिश करते थे कि एक ही बेड़मी में सारी सब्जी खा जाते थे। फिर दोबारा दोंना लेकर आगे बढ़ा देते थे। आलस की कीमत | Laziness Story for Kids in Hindi मैं: भैया थोड़ी सी सब्जी देना। सब्जी देने वाला लड़का लालाजी की ओर देखता। लालजी हम दोंनो को घूर कर देखते, इससे पहले वो कुछ बोलते – मैं: अरे लालजी आपकी सब्जी बहुत
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घर से निकलते ही बाहर चौराहे के सामने ही मोटे लाला जलेबी वाले की मशहूर दुकान थी। सुबह बेड़मी
,
कचौरी और साथ में गरमा गरम जलेबी मिलती थीं।
शाम को एक बड़ी सी कड़ाही में दूध उबाला जाता था। जिससे रबड़ी तैयार होती थी। रात को दूर दूर से लोग दूध जलेबी खाने के लिये आते थे।
छज्जू मल बहुत मोटे थे। वे दुकान पर बैठे रहते थे अपने कारीगरों को डॉंटते रहते थे। गल्ला सम्हालना उन्हें बहुत अच्छी तरह से आता था। किसी से भी एक रुपये का हिसाब गलत नहीं होता था।
सुबह ग्यारह बजे से रात के बारह बजे तक दुकान पर ही बैठे रहते थे।
सभी उन्हें मोटे लाला के नाम से जानते थे। कुछ पुराने लोग थे
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जिन्हें उनका नाम छज्जू मल पता था।
मैं उस समय तेरह या चौदह वर्ष का था। मां से पांच रुपये लेकर जाता था। दो रुपये की दो बेड़मी और तीन रुपये की जलेबी आ जाती थी। वहीं बराबर में पड़ी बेंच पर बैठ कर खाता था। हम दो दोस्त जाते थे। हम कोशिश करते थे कि एक ही बेड़मी में सारी सब्जी खा जाते थे। फिर दोबारा दोंना लेकर आगे बढ़ा देते थे।
: घर से निकलते ही बाहर चौराहे के सामने ही मोटे लाला जलेबी वाले की मशहूर दुकान थी। सुबह बेड़मी
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कचौरी और साथ में गरमा गरम जलेबी मिलती थीं।
शाम को एक बड़ी सी कड़ाही में दूध उबाला जाता था। जिससे रबड़ी तैयार होती थी। रात को दूर दूर से लोग दूध जलेबी खाने के लिये आते थे।
छज्जू मल बहुत मोटे थे। वे दुकान पर बैठे रहते थे अपने कारीगरों को डॉंटते रहते थे। गल्ला सम्हालना उन्हें बहुत अच्छी तरह से आता था। किसी से भी एक रुपये का हिसाब गलत नहीं होता था।
सुबह ग्यारह बजे से रात के बारह बजे तक दुकान पर ही बैठे रहते थे।
सभी उन्हें मोटे लाला के नाम से जानते थे। कुछ पुराने लोग थे
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जिन्हें उनका नाम छज्जू मल पता था।
मैं उस समय तेरह या चौदह वर्ष का था। मां से पांच रुपये लेकर जाता था। दो रुपये की दो बेड़मी और तीन रुपये की जलेबी आ जाती थी। वहीं बराबर में पड़ी बेंच पर बैठ कर खाता था। हम दो दोस्त जाते थे। हम कोशिश करते थे कि एक ही बेड़मी में सारी सब्जी खा जाते थे। फिर दोबारा दोंना लेकर आगे बढ़ा देते थे।
आलस की कीमत | Laziness Story for Kids in Hindi
मैं: भैया थोड़ी सी सब्जी देना।
सब्जी देने वाला लड़का लालाजी की ओर देखता। लालजी हम दोंनो को घूर कर देखते
,
इससे पहले वो कुछ बोलते –
मैं: अरे लालजी आपकी सब्जी बहुत
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