कुछ मान्यताओं के अनुसार कजलियां पर्व प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा है


कुछ मान्यताओं के अनुसार कजलियां पर्व प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा है। इस पर्व का प्रचलन महान राजा आल्हा ऊदल के समय से है। आल्हा की बहन चंदा श्रावण माह से ससुराल से अपने मायके आई तो सारे नगरवासियोंं ने कजलियों से उनका स्वागत किया था।महोबा के सिंह सपूतों आल्हा-ऊदल-मलखान की वीरता आज भी उनके वीर रस से परिपूर्ण गाथाएँ बुंदेलखंड की धरती पर बड़े चाव से पढ़ी ,सुनी व समझी जाती है। महोबे के राजा के राजा परमाल, उनकी पुत्री राजकुमारी चन्द्रावलि का अपहरण करने के लिए उस समय के दिल्ली के राजा पृथ्वीराज ने महोबे पै चढ़ाई कर दि थी। राजकुमारी उस समय तालाब में कजली सिराने अपनी सखी-सहेलियन के साथ गई थी। राजकुमारी को पृथ्वीराज हाथ न लगाने पाये इसके लिए राज्य के बीर-बाँकुर (महोबा) के सिंह सपूतों आल्हा-ऊदल-मलखान की वीरतापूर्ण पराक्रम दिखलाया था। इन दो बीरों के साथ में चन्द्रावलि का ममेरा भाई अभई भी उरई से जा पहुँचे।
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कुछ मान्यताओं के अनुसार कजलियां पर्व प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा है। इस पर्व का प्रचलन महान राजा आल्हा ऊदल के समय से है। आल्हा की बहन चंदा श्रावण माह से ससुराल से अपने मायके आई तो सारे नगरवासियोंं ने कजलियों से उनका स्वागत किया था।महोबा के सिंह सपूतों आल्हा-ऊदल-मलखान की वीरता आज भी उनके वीर रस से परिपूर्ण गाथाएँ बुंदेलखंड की धरती पर बड़े चाव से पढ़ी
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सुनी व समझी जाती है। महोबे के राजा के राजा परमाल
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उनकी पुत्री राजकुमारी चन्द्रावलि का अपहरण करने के लिए उस समय के दिल्ली के राजा पृथ्वीराज ने महोबे पै चढ़ाई कर दि थी।
राजकुमारी उस समय तालाब में कजली सिराने अपनी सखी-सहेलियन के साथ गई थी। राजकुमारी को पृथ्वीराज हाथ न लगाने पाये इसके लिए राज्य के बीर-बाँकुर (महोबा) के सिंह सपूतों आल्हा-ऊदल-मलखान की वीरतापूर्ण पराक्रम दिखलाया था। इन दो बीरों के साथ में चन्द्रावलि का ममेरा भाई अभई भी उरई से जा पहुँचे।
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