ये तीन श्राप जो महावीर कर्ण की मृत्यु का कारण बने महावीर कर्ण के बिना महाभारत यु


ये तीन श्राप जो महावीर कर्ण की मृत्यु का कारण बने महावीर कर्ण के बिना महाभारत युद्ध की कल्पना भी नहीं की जा सकती। साथ ही कौरवों के सेनापति कर्ण अपने प्रतिद्वंदी अर्जुन से भी बड़े धनुर्धर थे, जिसकी तारीफ स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने की थी। कर्ण न केवल एक शक्तिशाली योद्धा थे बल्कि बहुत बड़े दानवीर भी माने जाते थे। जिन्होंने बिना युद्ध का परिणाम सोचे बिना अपना कवच-कुंडल दान में दे दिए। कर्ण जन्म से क्षत्रिय थे लेकिन वह रथ चालक के घर पलकर बड़े हुए थे, जिससे उनका एक नाम सूत पुत्र भी पड़ा। उनकी वीरता को देखते हुए दुर्योधन ने उनको अंगदेश का राज सिंहासन दे दिया और जरासंध के हारने के बाद चंपा नगरी का भी राजा बना दिया। लेकिन इस महान योद्धा का जीवन किसी तपस्या से कम नहीं था। इन्हें कई ऐसे कर्मों का परिणाम भी भोगना पड़ा जिसमें इनकी कोई गलती नहीं थी। अनजाने किए काम और दूसरों की भलाई के चक्कर में इन्हें 3 ऐसे श्राप मिल गए जो इनके लिए प्राणघातक साबित हुए, इन्हीं 3 श्रापो की वजह से महाभारत के निर्णायक युद्ध में इन्हें अर्जुन के हाथों वीरगति प्राप्त हुई। पहला शाप परशुराम ने दिया । जब कर्ण धनुर्विद्या सीखने के लिए गुरु द्रोणाचार्य पास पहुंचे तो उन्होंने कर्ण के सूत पुत्र होने की वजह से शिक्षा देने से मना कर दिया। कर्ण इससे निराश होकर भगवान परशुराम के पास पहुंचे। परशुरामजी ने कर्ण की प्रतिभा को जानकर उन्हें अपना शिष्य बना लिया। एक दिन अभ्यास के समय जब परशुराम थक चुके थे तो उन्होंने कर्ण से कहा कि वे थोड़ा आराम करना चाहते हैं। तब कर्ण बैठ गए और उनकी जंघा पर सिर रखकर परशुराम आराम करने लगे। थोड़े समय बाद वहां एक बिच्छू आया, जिसने कर्ण की जंघा को काट लिया। अब कर्ण ने सोचा कि अगर वह हिले और बिच्छू को हटाने की कोशिश की तो गुरुदेव की नींद टूट जाएगी। इसलिए उन्होंने बिच्छू को हटाने की बजाय उसे डंक मारने दिया, जिससे उनका खून बहने लगा। इससे कर्ण को भयंकर कष्ट होने लगा और रक्त की धारा बहने लगी। जब धीरे-धीरे रक्त गुरु परशुराम के शरीर तक पहुंचा तो उनकी नींद खुल गई। परशुराम ने देखा कि कर्ण की जांघ से खून बह रहा है। यह देखकर परशुराम क्रोधित हो गए कि इतनी सहनशीलता केवल क्षत्रिय में ही हो सकती है। तुमने मुझसे झूठ बोलकर ज्ञान प्राप्त किया है इसलिए मैं तुमको शाप देता हूं कि जब भी तुम्हें मेरी दी हुई विद्या
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ये तीन श्राप जो महावीर कर्ण की मृत्यु का कारण बने
महावीर कर्ण के बिना महाभारत युद्ध की कल्पना भी नहीं की जा सकती। साथ ही कौरवों के सेनापति कर्ण अपने प्रतिद्वंदी अर्जुन से भी बड़े धनुर्धर थे
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जिसकी तारीफ स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने की थी। कर्ण न केवल एक शक्तिशाली योद्धा थे बल्कि बहुत बड़े दानवीर भी माने जाते थे। जिन्होंने बिना युद्ध का परिणाम सोचे बिना अपना कवच-कुंडल दान में दे दिए। कर्ण जन्म से क्षत्रिय थे लेकिन वह रथ चालक के घर पलकर बड़े हुए थे
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जिससे उनका एक नाम सूत पुत्र भी पड़ा। उनकी वीरता को देखते हुए दुर्योधन ने उनको अंगदेश का राज सिंहासन दे दिया और जरासंध के हारने के बाद चंपा नगरी का भी राजा बना दिया। लेकिन इस महान योद्धा का जीवन किसी तपस्या से कम नहीं था। इन्हें कई ऐसे कर्मों का परिणाम भी भोगना पड़ा जिसमें इनकी कोई गलती नहीं थी। अनजाने किए काम और दूसरों की भलाई के चक्कर में इन्हें 3 ऐसे श्राप मिल गए जो इनके लिए प्राणघातक साबित हुए
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इन्हीं 3 श्रापो की वजह से महाभारत के निर्णायक युद्ध में इन्हें अर्जुन के हाथों वीरगति प्राप्त हुई।
पहला शाप परशुराम ने दिया । जब कर्ण धनुर्विद्या सीखने के लिए गुरु द्रोणाचार्य पास पहुंचे तो उन्होंने कर्ण के सूत पुत्र होने की वजह से शिक्षा देने से मना कर दिया। कर्ण इससे निराश होकर भगवान परशुराम के पास पहुंचे। परशुरामजी ने कर्ण की प्रतिभा को जानकर उन्हें अपना शिष्य बना लिया। एक दिन अभ्यास के समय जब परशुराम थक चुके थे तो उन्होंने कर्ण से कहा कि वे थोड़ा आराम करना चाहते हैं। तब कर्ण बैठ गए और उनकी जंघा पर सिर रखकर परशुराम आराम करने लगे। थोड़े समय बाद वहां एक बिच्छू आया
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जिसने कर्ण की जंघा को काट लिया। अब कर्ण ने सोचा कि अगर वह हिले और बिच्छू को हटाने की कोशिश की तो गुरुदेव की नींद टूट जाएगी। इसलिए उन्होंने बिच्छू को हटाने की बजाय उसे डंक मारने दिया
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जिससे उनका खून बहने लगा। इससे कर्ण को भयंकर कष्ट होने लगा और रक्त की धारा बहने लगी। जब धीरे-धीरे रक्त गुरु परशुराम के शरीर तक पहुंचा तो उनकी नींद खुल गई। परशुराम ने देखा कि कर्ण की जांघ से खून बह रहा है। यह देखकर परशुराम क्रोधित हो गए कि इतनी सहनशीलता केवल क्षत्रिय में ही हो सकती है। तुमने मुझसे झूठ बोलकर ज्ञान प्राप्त किया है इसलिए मैं तुमको शाप देता हूं कि जब भी तुम्हें मेरी दी हुई विद्या
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